अनंत-चिंतन
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मेरी अनंतता के क्या मायने, या कुछ यूँही लिख दिया एक शब्द
जीव तो स्व में ही सीमित, क्या सूझी स्वयं को कह दिया अनंत।
अनंत तो नाम न पर अनेकों का, कुछ मनन से ही होगा नामकरण
या सीमित को अनंत-दिशा हेतु, यहीं मत रुको अति दूर है गंतव्य।
यदि निराश बैठे रहे, माँ से चिपके, घर-घुस्सू रहे तो कैसे हो प्रगति
हदें तो बढ़ानी होगी, हर पोर में संपूर्णता की ललक चाहिए जगनी।
नर-वपु में खरबों कोशिकाऐं पर एक प्राण तत्व, मिल गति-शक्ति देते
पर क्या यह अल्प उपहार - नकारे या सस्ते में लें, अमूल्य स्वयं में है।
हमने कुछ वस्तु-पण लगा दिया, जबकि निर्माण में लगी ऊर्जा अथाह
पर उपलब्धता व क्रय-शक्ति अनुसार करते सीमित मूल्य निर्धारण।
पर प्रयुक्त अनंत शब्द का क्या हो अर्थ, सोचा कभी मेरी क्या सीमाऐं
या हूँ अन्तः विपुल जलधि या ब्रह्मांड प्रारूप, अद्यतन अजान जिससे।
कुछ तो मैं भी अद्वितीय पर शायद चिन्हित न, क्षुद्र पहचान में ही मग्न
यह न उचित, निज-संपदा परिचय से ही एक महत्ता हो सकती प्राप्त।
अनंतता चिंतन से भ्रमितचित्त हूँ, और अन्वेषण श्रम, छूटता सा कुछ
अर्थात संभावनाऐं तलाशो, कुछ अवश्यमेव काम की होगी अनुरूप।
सदा तो बहाने न बना सकता, परम जीवन-तत्व कर से फिसल रहा
क्यूँ संशय में हो - कोई न सहायतार्थ आएगा, कुछ झंझाड़ना पड़ेगा।
स्वान्वेषण एक अनवरत प्रक्रिया, पर शून्यता प्रतीतित क्षुद्र परिधि में
फिर चाहूँ कि अनंतता से संपर्क हो, हलचल मचा देता प्रति रोम में।
रूमी तो न गुरु शम्स तबरीजी से मिल हद-परिचय, यहाँ सब सफाचट
कब-किससे संपर्क हो अदर्शित, कथन-अशक्य, स्थिति में सी विक्षुब्ध।
इस अनंतता के क्या अर्थ संभव, भिन्न आयाम नाना समयों पर उभरते
शक्ति कितनी संभव है, सम कद-काठी वाले एक सुदृढ़ -सौष्ठव बने।
अनेक प्रातः भ्रमण करते, व्यायामशाला जाकर विभिन्न कसरतें करते
पसीना बहाते, फेफड़ों में पूरी हवा भरते, हृदय में रक्त-प्रवाह बढ़ाते।
स्वच्छ्ता व बल निर्णय मन में स्थापित, क्रियाऐं ऐसी कि रहें पूर्ण स्वस्थ
यूँ निद्रा-तंद्रा में न हो समय व्यतीत, पूर्ण जीने का एक लक्ष्य हो निर्माण।
एक नियमित दिनचर्या स्वास्थ्यमुखी, तो कुछ दिन में दिखोगे सुंदर-बली
यह भी सत्य है कि लोग एक व्यक्तित्व अंकन करते शरीर पुष्टता से भी।
चाहे हम टायसन बनने में न समर्थ, तो भी सकते अनेकों से बली बन
पर यहाँ अन्यों से न प्रतिस्पर्धा, बस एक पूर्ण-स्वास्थ्य करना अनुभव।
अर्थात एक ऐसा पथ चुनें जिसमें निज भी हित, उत्तम-अनंतता में पथ
हदें सदा वर्द्धित होगी, अनंतता अर्थ भी दर्शित सामर्थ्य से अग्रचरण।
माना दिमाग़ में परिमित कोशिकाऐं, तथापि क्या है समुचित सुप्रयोग
कुछ काम अवश्य ही लो, वरन क्षीणता मनन में ही जीवन होगा पार।
प्राण में मधुरतम क्षण रसास्वादन करना, किंचित इसे करना है पूरित
यह पूर्णता ही संभवतया अनंत स्वरूप है, पश्चात मिल होंगे एक सम।
यह दृष्टि विस्तृत होनी ही चाहिए, मृदुलतम स्वरूप दर्शन कर सकूँ
जिजीविषा कदापि क्षीण न हो, स्व पवन नामानुरूप गतिमान होवूँ।
अनंतता प्रत्येक प्राण-आयाम निहित हो, आमुखता की सोचूँ यत्न से
क्षमता-वृद्धि भी इस दिशा से ही, हर विरोध पार जाने का साहस है।
कोई न मन थाह बस चिंतन सीख लो, सफलता-द्वार खुलेंगे अनुरूप
जग-व्यवस्था प्रयासों व मति अनुरूप ही, इसे और मृदु बना दो तुम।
सुमधुर जग-गठन में पुण्यी सहकार करो, निज ही होंगे साधन सकल
इसी मन-देह का वासी मानना छोड़ दो, प्रभुता तुम्हारे चूमेगी चरण।
अनंतता अर्थ स्व में असीम ब्रह्मांड निहित, सर्वस्व इसी से प्रतिपादित
जय-संहिता के विपुल कृष्ण सा विश्व-रूप, पर होना सदा प्रयासरत।
पवन कुमार,
९ अगस्त, २०२० रविवार समय ९:०० बजे प्रातः
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी १७ मार्च, २०२० समय ८:३२ प्रातः से)