कुछ हिल्लोरें
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कुछ नए रंग की बात हो, जिंदगी में खुशहाली हो
झूमें, गाऐं, नाचे सारे, मन में तान सुरीली हो।
सभी का मन पुलकित हो, फाल्गुन की मस्त बहारों में
एक दूजे को चाहे मन से, ना फिर कोई बेहाली हो।
रंग-गुलाल अबीर यूँ फैले, सब तन-मन को सराबोर करें
और अपनी मस्ती में सबसे हँसी -ठिठोली हो।
सब ओर आनंद और रस का, मधुमय साम्राज्य हो
देश अपने में रहे सम्पन्नता, हर रोज यहाँ दीवाली हो।
मन बड़ा बने और दूसरों को समझे, सोच बने बहुत व्यापक
कर्त्तव्य का बोध हो, सबने मन में ऐसी ठानी हो।
अच्छे नागरिक बनें यहाँ, अपना तन-मन देश के लिए
सब अपने हैं मैं सबका हूँ, भाव ऐसे फ़ैलाने हों।
मन का हो भला दृष्टिकोण, सब पक्षों से न्याय करें
जाँचे-परखे करने से पहले, विवेक के संग फिर जाना हो।
अच्छा लेखन, अच्छा अध्ययन और अच्छे में मन तल्लीन रहें
बढ़ा कर अपने को जग में, सबको राह दिखानी हो।
अपनी अपेक्षाओं का आदर करें हम और उसमे सहयोग करें
मन के भाव समझ कर ही, कुछ कहने की बारी हो।
मस्ती का भाव रहे मन में, पुलकित औरों को भी करें
नहीं रुकने का हो कोई आलम, बस आगे बढ़ने की ठानी हो।
चले-चलो तुम अपनी धुन में, न हो कोई अहंकार
ज्ञान चक्षु खुल जाऐं मन के, परम में जुगत लगानी हो।
पवन कुमार,
5 जुलाई, 2014 समय 21:36 रात्रि
(मेरी डायरी दि० 23 मार्च, 2014 समय 11:20 पूर्वाह्न से )
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