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Sunday 13 April 2014

सबका भाग्योदय

सबका भाग्योदय 
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आज फिर दर्द सा उठा हृदय में, कैसे हो सबका भाग्योदय

कैसे बढ़ें खूब सब साथ-साथ ही, रहें प्रसन्न-संपन्न व निर्भय?


आज जीवन-अभाव सर्वत्र दर्शित, क्या उनके प्रादुर्भाव-कारण

क्यों न सारे मनुज सम बनेंकष्ट ही तो है हो जाने का असम।

निर्धन- जनों का चूल्हा तक नहीं जलताबच्चे विद्या न हैं पाते

मात्र घोर कष्टों में ही हरपल बीतता, राहत क्षण भर नहीं पाते॥


यह दुनिया है कुछ नेता-धनी-बाहुबलियों का एक साम्राज्य सा

किंतु निज तो सब अदर्शित,  बस  नियति है गालियाँ ही खाना।

क्यों घोर प्रपंच कर्ज कादरिद्र-असहायों के मँडराता सिर पर

मेहनत- मजदूरी करके भी,  सम्मान पूर्वक नहीं पाते पेट भर॥


अनेक नियम बने गरीब के हक़ में, पर कितना उनपर है पालन

कितनी उन हेतु दया समर्थों के मन मेंयह सब उनपर निर्भर।

फिर प्रश्न यहाँ रहम का भी न, अपितु मान मनुज-अधिकारों का

किसी पर कोई दया न चाहिएव क्षमता भी न रहनुमादारों में॥


सबको तुम निज समकक्ष पाओसर्व-प्रगति हेतु सदाचरण करो

हृदय में हो परस्पर-आदर, भेदभाव रहित समता-वातावरण हो।

उत्तम जीवन हो सभी का, जिसमें कोई भी नहीं साधन-अभाव हो

यह अभाव भी यदि हो कुछ समयपर विकास-प्रेरणा साथ हो॥


चलें साथ हम कदम मिलाकर ही, गिरते हुओं को भी लेवें संग

सकल विश्व प्रति कर्त्तव्य हमारा, ऐसा प्रतिफल में चल लें हम॥


पवन कुमार, 
29 मार्च, 2014 समय 6:39 सायं 
( मेरी डायरी दि० 6 दिसम्बर, 1998 से )  

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