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Saturday 5 April 2014

नींद के पार

नींद के पार 

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फिर चला मस्तिष्क का एक हिस्सा अपनी बात मनवाने को
तुम को तो नींद बहुत आती है जब इतना कुछ है बतियाने को। 

चारों तरफ अंधकार है तो वातावरण भी निस्तब्ध है 
क्या यह तुम्हारे लिए मौका नहीं, आलस छोड़ देने का।
एक बार पढ़ा था 'मैन ऑफ़ नेशंस ' में कि जो देश को बनाते हैं, उनको जागना पड़ता है जब और सो जाते हैं। 

अर्जुन का एक नाम 'गुडाकेश' था अर्थात् नींद को काबू करने वाला। 
इसी तरह लक्ष्मण भी वनवास के समय कभी सोया नहीं था। 

जब तुम सो जाते हो तो लगभग मर से जाते हो 
हाँ यह आवश्यक है कि यह सोना भी ज़रुरी है अच्छे स्वास्थ्य के लिए। 
पर  क्या सम्भव नहीं कि सोना उतना ही हो जितना नितांत आवश्यक हो 
क्योंकि बचा समय लगाया जा सकता है बहुत कुछ अच्छे कार्यों में । 

 नींद और खाना 
निर्धारित कर सकता है मनुष्य अपने अनुसार। 
और दोनों की अति हानिकारक है 
माना कि दोनों ही आवश्यक है परन्तु उचित मात्रा में। 

नेहरू ने ' आराम हराम है ' का नारा दिया।
प्रायः उद्धृत करते थे वे Robert Frost की निम्न पंक्तियों को  :
' Woods are dark and deep, but I have promises to keep.
Miles to go before I sleep, and miles to go before I sleep.'

अर्थ बहुत गहन है इन पंक्तियों का 
इनमें Promises क्या हैं , आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं ?
क्या प्रतिबद्धताएं है, और क्या उद्देश्य हैं 
उससे  भी अधिक आपकी सोच क्या है ?

अर्थ है 'Woods are dark and deep' का 
बहुत सारे आनंद हैं इस  दुनिया में,  रमा जा सकता है जिनमें स्वतः ही।  
लेकिन राह ढूँढनी है तुम्हेँ अपनी
क्योंकि है जीवन अल्प और कार्य अधिक। 

एक बार डॉ० अम्बेडकर से पूछा गया कि इतना कार्य क्यों करते हो तो उन्होंने उत्तर दिया जब समाज, देश इतना पीछे  है तो क्या मुझे इसके विकास में अपनी सारी  ऊर्जा नहीं लगानी चाहिए। 

नेहरू के बारे पढ़ा था कि वे रात को बहुत देर तक अध्ययन करते थे। गाँधी रात को  12 बजे तक कार्य करते थे और फिर सुबह चार बजे जाग जाते  थे। इंदिरा  गाँधी के  बारे  में सुना है कि वे  22 घण्टे तक कार्य कर लेती थी। आराम वे अपनी यात्रा के  दौरान ही गाड़ी में  करती थी। 

तो क्यों नहीं मैं अपना कार्य करने में पूरी  शक्ति लगा सकता ? 
क्यों मैं जीवन के हर एक क्षण को उसकी कीमत से नहीं भर सकता ? 
मेरा जीवन भी महान बन सकेगा 
फिर मैं जीवन का सच्चा संवाहक बन सकूँगा। 

जीवन में प्रश्न करना सीखो , उत्तर तो मिल ही जाऐंगे 
अच्छे प्राणियों से मित्रता करो तो राहें और भी आसान हो जाएँगी।  
अपनी  शक्तियों का  संग्रह करो न कि उनका अपव्यय
निग्रह करो अपनी इंद्रियों का। 

मन में जो भी सोचो 
कोशिश करो पूरा  करने की उसको । 
पर 'सोचना ' भी तुम्हारा पवित्र होना चाहिए 
किसी के लिए गलत मत बोलो। 

फिर अपना एक चरित्र है 
और  क्या अधिकार है औरों पर सवाल या टिपण्णी करने का। 
कहीं न कहीं कमजोर है हम सब, 
करें  दूर कमजोरी एक-दूसरे की और बनाए सबल सबको।   

चलो अब सो जाओ।  अलविदा , शुभ रात्रि , प्रणाम। 


पवन कुमार, 
5 अप्रैल, 2014 समय 12:40 दोपहर 
( मेरी डायरी शिलौंग 26 जनवरी, 2000 समय 2 बजे रात्रि से )  



  




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