रास्ता ही मंजिल
---------------------
कहानियों की बातें हैं कही ही तो जाए
कैसी-2 होंगी कुछ बताया ना जाए।
मैं कौन हूँ , कहाँ हूँ और क्या हूँ , प्रश्न विशाल है
जीवित भी हूँ या मृत हूँ , कुछ आभास हो तो जाए।
या फिर चलता -फिरता रोबोट हूँ या कुछ संजीवन हूँ
या फिर बैटरी -चालित हूँ या स्वप्न में भ्रमित हूँ।
या फिर अपने-आपमें गुम हूँ या संचालित हूँ
या कुछ सोच का पुट मेरे में है या बस निस्पंद हूँ।
समस्त ऐसे विचारों से बस निकला ही न जाए
क्या करूँ मैं, कुछ कहा ही न जाए।
अपने को समझ पाना ही कठिन है यह तो फिर भी दुनिया है
अपने को सचालित करना दुष्कर है फिर ये तो सब और हैं।
मैं स्वयं में हारा, विजित होने की आशा में जीता एक मानव
फिर समस्त प्राणियों से मेरे अनुरूप होने की आशा कैसे करूँ?
क्या दुनिया में मैं ही एक ठीक हूँ या और भी हैं
या फिर मेरे में भी कुछ गुण है जिससे वे आकर्षित हों।
या फिर मैं स्वस्थ मन का स्वामी हूँ या गलती ढूंढने का यंत्र
या फिर मानव की दुर्बलताओं से मेरा कुछ नाता है।
क्या हम एक दूसरें को सिर्फ बर्दाश्त करतें रहेंगें
या फिर एक-दूसरे को पूर्ण बनाने में सहायता भी देंगें।
पर कुछ भी हो हमारा रास्ता ठीक होना चाहिए
मंजिल से अधिक रास्ते की परवाह करों।
क्योंकि यह रास्ता ही असली मंजिल है
अगर तुम पहचान सको।
पवन कुमार,
२१ अप्रैल, २०१४ समय २३:१२ म ० रा ०
(मेरी शिलोंग डायरी दि० १७.०२.२००० समय म० रा० १ बजे से )
No comments:
Post a Comment