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Wednesday 16 April 2014

चिंतन असमंजसता

चिंतन असमंजसता 
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कैसे करूँ आरम्भ और क्या लिखूँ , बहुत गहन असमंजसता है।  एक शब्द को लिखने लिए मानो कई सदियाँ लग रही हैं। कैसे इस समय का सदुपयोग हो ? मन , बुरी तरह की जड़ता, जो मेरे मस्तिष्क में इस समय घर की हुई है , को दूर करने के प्रति प्रयासरत है। परन्तु प्रयत्न क्या होगा और क्या अगली पंक्तियों की दिशा होगी, कुछ भी तो सोच पाने में असमर्थ हूँ। मेरी यह बेबसी और तड़पन क्या हैं और क्या इसका रहस्य है ? क्या यह केवल स्थूल शरीर में स्थित मस्तिष्क की अनेक क्रियाओं में से एक है या फिर किसी भयंकर कमी को इंगित कर रहा है। या कोई अजनबी शख़्सियत, जो मुझसे कहीं अधिक शक्तिशाली और सवेंदनशील है, मुझसे  कुछ ज्यादा ही चाहता है। फिर क्या यह खुद को समझने के लिए और फिर न हो सकने की अवस्था में स्वयं में उलझना ही  है और कदाचित अविवेक की स्थिति में स्वयं का स्वयं से टकरना है। फिर मैं क्या हूँ, उसकी परिभाषा क्या है और इस विषय को समझने में जितना प्रयास अपेक्षित है, उतना मैं रख पा रहा हूँ ? इसी तरह के विचार में मग्न हूँ और स्वयं की बोझिलता को दूर करने के लिए एक ही मृगतृष्णा में भटकता हुआ उन्हीं - उन्हीं विचारों में केंद्रित हूँ।  फिर अगर परमात्मा नामक कोई शक्ति है तो उसे किस तरह अपने मन का मीत बना सकता हूँ और किस तरह उसमें या उसे स्वयं में अंगीकार कर सकता हूँ ? इस तरह के संवाद भी यदा-कदा इस मन में उगते हैं पर शायद सशक्त जिज्ञासा का अभाव है और प्रयत्न तथा कर्त्तव्य पथ पर बढ़ने के लिए एक अदम्य आत्म-शक्ति की क्षीणता है तो भी असमंजसता की यह स्थिति है कि तड़पता भी हूँ।  यह तो उस दीन- हीन की सी स्थिति है जो आप स्वयं कुछ न करके केवल दूसरों को उसकी सहायता न करने के लिए उलाहना देता है। प्रभु ! मुझे अपने सही मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। 
धन्यवाद। 


पवन कुमार ,
16 अप्रैल, 2014 समय 20:47 सायं 
          (मेरी डायरी दि ० 14.10.2000 से )         

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