माँ की विदाई
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माँ चल बसी 12 मई, 2011 वीरवार दोपहर करीब 12:30 बजे
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माँ चल बसी 12 मई, 2011 वीरवार दोपहर करीब 12:30 बजे
आया था सन्देश भाई का कि माँ अब नहीं रही।
क्या गुजरी थी उस समय मेरे मन-तन पर
शायद जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई हारा था।
हालाँकि घटती सबके संग, जग हेतु कुछ नूतन नहीं
परन्तु मेरी तो एक ही माँ थी और वह भी चली गई।
यह अभाव बड़े घाव के साथ हृदय को खाली कर गया
चाहकर भी कुछ न कर पा रहा, खुद को अनाथ पाता।
माँ क्या करूँ तेरे बिन, अब तो तुझसे लड़ भी न सकता
जब उत्तुंग था तुझसे भिड़ जाता, गुस्सा व बहस करता।
फिर तू कुछ बूढ़ी होने चली थी और मेरा समर्थन करती
बहुत विषयों पर गूढ़ चर्चा करती और विश्वास करती।
माँ मुझे गर्व है है कि तेरी कोख से जन्म लिया
चाहे पूरे सौ साल न सही, जीवन का बहुत अंश जीयी है।
शायद तुझे अब ज्यादा शिकायत भी नहीं थी
इसीलिए दुनिया से इतनी शांति से चली गई।
माँ आभारी हूँ इस जीवन में लाने के लिए
हमारे लिए बहुत कष्ट झेलें, इस योग्य बनाया।
तूने हमें अपने खून के कतरों से सिंचित किया
व पूरे पादप में परिवर्तित कर स्वयं विलीन हो गई।
माँ तेरी कीर्ति चहुँ ओर, तू सदा विजयी है
तू जीत गई और हमें भी जिता गई।
तेरी महिमा जितनी कहूँ उतनी कम है
तू अच्छी माँ पर हम नाशुक्रिए पूत हैं।
नहीं कुछ ज्यादा सेवा तेरी हम कर पाऐं
कई परिस्थितियाँ ऐसी थी, तू ज्यादा संग न रही।
पर फिर भी जितना बन पाया तेरी सेवा में हाज़िर थे
और सदा तेरी लम्बी उम्र की दुआ करते थे।
तू चली गई, और हमें व पिता जी को छोड़ गई
पिता को तुझ पर नाज़, साथ तूने बहुत निभाया।
आखिरी समय में साँस तूने उनकी बाँहों में छोड़ी
पर अफ़सोस तेरी एक भी संतान उस समय न थी।
पर तेरी विदाई में सब साथ थे तेरे
एक-2 करके समस्त जन जुड़ते गए।
और बड़ा काफ़िला बना था तेरी उस डोली पर
और सिंगर करके तू बहुत सुन्दर लग रही थी।
परन्तु श्मशान में तो जैसे तूने मुँह ही मोड़ लिया
सारा मोह त्याग दिया, बड़े बाबुल की प्यारी हो गई।
पर तूने ही नया नहीं किया, दुनिया की रीत है
हमें कोई शिकायत नहीं, पर भुला न पाऐंगें तुझे।
मेरी माँ तू जहाँ भी है खुश रह। हमें न पता कि तू हमें देख रही या नहीं
पर हम तुझे अपने बहुत पास हैं पाते। वैसे ही जैसे तू सारी जिंदगी थी, न कम न ज्यादा। बहुत करीब- बहुत करीब। मेरी माँ।
पवन कुमार,
14 जून, 2014 समय 22:00 रात्रि
(मेरी डायरी दि० 17 जुलाई, 2011 म० रा० 11:35 से )
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