सक्रिय रात्रि
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आज फिर लेखनी उठाई है कुछ बतियाने के लिए
उसी तरह के उनींदे क्षणों में जिनमें अकसर ऐसा करता हूँ।
मध्य रात्रि है और सभी निद्रा-मग्न हैं
संसार सुसुप्त है और चहुँ ओर निस्बद्धता है।
पूर्णिमा के बाद का चाँद अपनी अनुपम छटा बिखेरे है
जिससे धूमिल तारे कहीं -2 छुप गए हैं।
पर यह रात्रि भी बिलकुल खामोश नहीं है
जिनका दिन में कुछ अनुभव नहीं होता, वे रात में सक्रिय हैं।
चंदा-तारे अपनी सुंदरता बिखेरे हैं
बस देखने वाले और उनका धैर्य वाँछित है।
रात्रि के जन्तु - पक्षी पूरी तरह सक्रिय हैं
दीवार घड़ी की टिक -टिक स्पष्ट सुनाई देती है।
और मेरा मस्तिष्क के नींद का भाग अपना कार्य करने को उतारू है
लेकिन मन है कि जीवन में कुछ करूँ और व्यर्थ समय न गवाऊँ।
शायद इसीलिए कुछ पढ़ने, सोचने की कोशिश करता हूँ
जितना जान सकूँ उतना प्रयत्न करता हूँ।
लेकिन जीवन की प्रतिबद्धताओं का अपना महत्त्व है
और निश्चय ही वे अपने लिए समय और ऊर्जा माँग करती हैं।
आजकल पढ़ रहा ख़लील ज़िब्रान को, लियो टॉलस्टॉय को
सर्वपल्ली राधाकृष्णन, रमन महर्षि, चार्ल्स डिकेन्स को।
विज्ञान में कार्ल सागन का ब्रोकास माइंड और
आईसक एसिमोव का न्यू गाइड टू साइंस इत्यादि।
विषय इतने बड़े हैं कि बहुत समय माँगते हैं
लेकिन जितना कर सकता हूँ, कोशिश करता हूँ।
विद्वान तो नहीं लेकिन यह शायद उस राह में कदम है
जानना ही तो दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है।
पवन कुमार,
19 जून, 2014 समय 00: 09 म० रा०
(मेरी डायरी दि० 13 मार्च, 1998 समय रा० 1:50 से )
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