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Wednesday 18 June 2014

रुदन


रुदन
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तुझको शायद रुलाने में मज़ा आए 
बहुत सताए तू बहुत रुलाए। 

बहुत है शक्तिशाली तू 
कमजोरों पर और ज्यादा बल आजमाए। 
कैसा तू है रे बलशाली  
गिरे हुओं को और गिराएं। 

तेरी सत्ता के वासी हैं हम  
जैसे चाहे वैसे नाच नचाए। 
हम तो भागी हैं दुःख के  
और तू अपनी लीला दर्शाए। 

तेरी कृपा सुनी थी सब पर 
पर कैसे हमको यकीं ही आए। 
मुझ पर बीती मैं ही जानूँ 
कैसे - कैसे तूने बाण चलाए। 

मन तड़पन का समय है 
तू तो फिर आग दूनी भड़काए। 
तेरी कोशिशों का आशी था मैं 
पर तू अपना रोष दिखाए।  

मेरी खता तो बहुत ही होगी 
पर तू तीर तू कहीं ओर चलाए। 
मेरी जान तो है पवित्र  
उस पर क्यूँ तू दाँव चलाए। 

उसका रुदन मैं सह नहीं सकता 
बतला दे क्या जतन लगाए। 
तुझसे लड़ाई तुझसे शिकवा 
कैसे - कैसे वार चलाए। 

बहुत है तू रे ओ बेदर्दी 
कुछ भी तो दया न आए। 
क्यूँ तू ऐसा बन गया है रे 
जब दुनिया तुझसे आस लगाए। 

तेरी कृपा का सुना था बहुत भरोसा 
पर वो तो कहीं नज़र न आए। 
मैं तो हूँ एक पागल सा झोंका 
तेरी मर्ज़ी वहाँ भगाए। 

किन -किन दिनों का बदल है रे 
मुझ पर कैसे ज़ुल्म है ढाए। 
भाई मेरे तू बन जा मित्र 
आकर नैया पार लगाए। 

किस पर करूँ मैं यूँ विश्वास 
जब बाड़ ही तो खेत को खाए। 
जहाँ पर देखूँ वहीँ निराशा 
किरण प्रकाश की नज़र न आए। 

मेरी दुनिया को समझने वाले 
तेरी दया का असर जो पाए। 
उसकी होगी किस्मत अच्छी 
जिस पर तू नज़रे -इनायत घुमाए। 

कहना क्या और रोना क्या  
जब दुनिया में रोते हुए आए।  
बहुत दुखी है रे मन मोरा 
आकर इसको तू कुछ समझाए। 

कैसे करूँ यकीं तेरी रहमत का 
कोई प्रमाण तो नज़र न आए। 
दुनिया बोले तू है दयालु 
मुझको तो पर यकीं न  आए। 

बन्दा परवर बहुत है सच्चा 
छोटो -बड़ों में अंतर न पाए। 
क्यूँ है जुर्म ही, क्यूँ न न्याय 
जिसका समय है वो क्यों न आए। 

मेरा कौन सा है अपराध 
क्या मैंने कुछ काम न  पाए। 
मेरी नौकरी मेरी रोजी 
क्या मैंने कोई कसर है ठाए। 

क्या हूँ मैं फिर बहुत निकम्मा 
तू मुझ पर फिर डाँट लगाए। 
मैं तो नहीं हूँ बहुत रे तगड़ा 
तू क्यों मुझको बार -बार है ढाए। 

इस दुनिया से उस अम्बर तक 
मुझको तेरा छोर ना पाए। 
छुप कर तेरा वार है देखा 
बहुत महीन तक वह है जाए। 

बहुत विकट घड़ी है मेरी 
इसपर तू फिर मिर्च लगाए। 
कर दे सहायता बनकर मीत तू 
हर विपदा का तू हल सुलझाए। 

रोऊँ, हँसू और शिकायत करता 
किसको तेरे बिन बतलाए। 
भावुक नहीं मैं होना चाहता 
फिर क्यूँ न ढाढ़स बंधाए। 

दुनिया का है दस्तूर  
रोते हुए को और रुलाए। 
पर मैं शक्ति नहीं पाता  
फिर बता हम कैसे ये गम तो खाए। 

तू उसको कर देना अच्छा 
मेरा तो फिर भी देखा जाए। 
आजा कर दे माफ़ खता भई 
तू जो कुछ फिर ऐसा कर पाए। 

दे दे सुधारने का अवसर 
हम इसको शायद व्यर्थ गवाएँ। 
भूलों से सुना मिलती है शिक्षा 
कैसे बता फिर मन समझाए। 

तू तो दिखा दे शीशा मेरा 
ताकि समझ खुद को पाए। 
सम्मान करें और सम्मान पाए 
ऐसे ही न व्यर्थ जन्म गँवाएँ। 

क्या है अपेक्षित मुझसे ओ मौला 
तू मेरे कर्त्तव्य समझाए। 
मैं तो भुला भटका राही 
ठोकर खाता गिरता जाए। 

बहुत है घायल घुटने मेरे 
चलने की सामर्थ्य नहीं तो पाए। 
फिर तो क्यूँ न संबल बनता 
आकर मुझको यूँ गले लगाए। 

दुनिया का सुना मैंने संवाद 
जैसा कूकेँ गूँज वैसी पाए। 
फिर मैं शायद बहुत बुरा हूँ 
वरना ज़ुल्म क्यों फिर ऐसे ढाए। 

किसका रुदन था यह इतना दारुण 
ह्रदय में ये घाव लगाए। 
रोता है और यह कहता है 
आकर मुझको कोई गले लगाए। 

मैं नहीं समझ तेरी मंशा 
क्या -क्या तू ये सितम हैं ढाए। 
इतना तो पाता तय हूँ 
नीयत तेरी साफ़ नज़र न आए। 

क्यूँ न करूँ मैं तुझसे शिकायत 
क्या तुझ पर कुछ अधिकार न पाए। 
मेरा अपना ही साथी रे तू 
फिर कैसा यह बदल पाए। 

माना था मैंने तुझे ढूँढा 
जीवन में यूँ चिन्तन कराए। 
मैं तो करता तेरी आराधना 
तुझमें फिर कुछ समय बिताए। 

रात के बारह बजते जाते 
तू फिर भी न कोई ढाढ़स बँधाए। 
क्यूँ है शिकायत ओ मेरे मौला 
मुझको तो कुछ समझ न आए। 

कैसे करूँ मैं समाप्त गाथा 
सिर - पैर तो नज़र न आए। 
क्या मैं यूँ ही बड़बड़ाता जाता 
वहाँ पर ऊषा को बुखार में तड़पाए। 

मेरी छोटी बिटिया रानी 
उससे भी कोई बात न कर पाए। 
उसकी ही मैं चिन्ता करता 
वरना बचा क्या जो तड़पाए। 

ओ मेरे मौला बन जा साथी 
सहारा देकर मुझे उठाए। 
मैं तो हूँ पाता विवश स्वयं को 
अपना सहारा नज़र ना आए। 

घोर निराशा में तू बन जा  साथी 
बोल आस के वचन जो चाहे। 
उनसे हो शायद मेरा कल्याण 
क्यूँ कि मरहम उनमें ही पाए। 

हाथ पकड़ा के उठा दे मुझको 
कह दे खुश फिर दिन हैं आए। 
ऊषा वहाँ पर होगी खुश फिर 
क्योंकि वह तो बहुत आस लगाए। 

छोड़ निराशा ओ मेरी जानूँ 
अपना ध्यान कर मेरे ही लाए। 
इतनी दूर हम हैं रे बैठे 
कैसे मन को फिर समझाए। 

जाग - जाग कर मन मेरे में 
विव्हळता मुझको है तड़पाए। 
क्योंकि दुनियादारी है ऐसी 
किसी को खुश देखकर कभी न हर्षाए। 

कैसे करूँ मैं गुज़र रे अपना 
राह तो कोई नज़र न आए। 
विपद पड़ी है तो रास्ता भी होगा 
क्योंकि हर मर्ज़ की दवा है पाए। 

फिर तू तो है वैद्यों का वैद्यक 
तुझसे कोई क्या छुप पाए। 
दर्द भी तेरा दवा भी तेरी 
मैं भी तेरा भक्त लुभाय। 

फिर तू चाहे दे जो मर्ज़ी 
दवा के नाम से चाहे ज़हर पिलाए। 
जीवन तो है तेरा ही मौला 
तू जैसा चाहे वैसा नचाए। 

मैं तो तुझमें ध्यान लगाता 
अपना करम तू करता जाए। 
जो तुझे लगे मैं पात्र हूँ उपयुक्त 
तो थोड़ी सी कृपा दौड़ाए। 

धन्यवाद प्रभु तेरा मुझ पर 
रोते हुए में भी आस लगाए। 

पवन कुमार,
18 जून, 2014 समय 00:10 म० रा  
( मेरी डायरी दि० 4 अक्तुबर, 2001 समय 12:15 म० रा० ) 


  
  

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