एक प्रार्थना
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करीबियाँ हैं खुद से, सुकून की बात है
बढ़े और नज़दीकियाँ, यही असली सौगात है।
विषयों को बदलने का कुछ हुनर तो सीखो
कुछ मधुर कहने, करने का विवेक तो रखो।
नहीं चलो यूँ मूर्ख सम, जीवन बिताते हुए
क्या करना है, ज़रा ठीक से समझ तो लो।
मुस्कुराने की आदत बने तो सबको सुकून हो
कुछ उपकार करने की चेष्टा तो हो जाए।
माना निठल्लों को मुफ्त खिलाने की नहीं मेरी मंशा
सुबुद्धि से सबको श्रेष्ठ करने की प्रेरणा हो जाए।
भले ही हम नहीं योग्य हैं, दूसरों को समझाने में
लेकिन कुछ को तो अचेतन से चेतन में बदल ही देते हैं।
बहुतों का न होता हो चाहे काया-कल्प
लेकिन कुछ को तो बेहतर कर ही देते हैं।
यह कैसा रूपांतरण होना है, मेरे प्रभु
मेरा चरित्र समझा दो रे।
मुझमें आध्यात्मिकता का स्पन्दन हो जाए
और मन की सम्पन्नता बढ़ा दो रे।
मेरी प्रवृत्तियों को उचित दिशा दे मौला
और कुछ योग्य से योग्यतर बना दो रे।
मैं भी तर जाऊँगा, उँगली तेरी पकड़
और मानव सच्चा बना दो रे।
मेरी हदों को बढ़ा दे, ऐ जगत के मालिक
मुझ पर लदा अनावश्यक बोझ हटा दीजिए।
कीमत तो मन की तू ही बढ़ा सकता है
अतः प्रार्थना तुमसे, जो उचित हो कर दीजिए।
धन्यवाद, शुभ रात्रि।
पवन कुमार,
19 जून, 2014 समय 23:31 रात्रि
( मेरी डायरी दि० 17 फरवरी, 2011 समय 12:20 म० रा० )
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