Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Tuesday 11 March 2014

गुण के ग्राहक


गुण के ग्राहक
--------------------------

महकूँ-झूमूँ मैं, गाऊँ मैं, मन अपना बहलाऊँ 
प्रभु को पास समझकर, मन अपना हल्काऊँ। 

मन में हो सब हेतु आदर, न कोई ऊँचाँ -नीचा 
काम करे जो कोई अच्छा, वही सबसे सच्चा। 
जिसके मन में हो सच्चाई, वह हो सबका मीत 
ऐसे मनुज से सब करते हैं, मन में सच्ची प्रीत। 

गुण-ग्राहक बन जाओ, फलों से झुक जाओगे 
संगति जैसी तुम पालोगे, वैसे ही बन जाओगे। 
आँखें कई उठी लिए तुम्हारे, तुम उनके बन जाओ 
ले लो सबको बाहों में तुम, मन उनका महकाओ। 

दो आशा सबको तुम, स्वयं भी आशावान बनो 
समाधिपद में रहो हमेशा और चरित्रवान बनो। 
गौतम बुद्ध - महावीर बनो और बनो बापू गांधी 
 भीम बनो तुम, बनो युधिष्ठिर और शिव के नांदी। 

विश्व हमेशा वैसा ही दर्शित, जैसा तुम चाहते हो 
होगा कोष विशाल तुम्हारा, अगर ऐसा चाहते हो। 
सोचना अपना अच्छा-बुरा, धार अपनी पहचानना 
स्वयं पर भरोसा करके तुम, राह अपनी संवारना। 


पवन कुमार, 
11 मार्च, 2014  
(साभार डायरी से - दि० 23.03.1998 समय 1.10 बजे म० रा० )  

No comments:

Post a Comment