गुण के ग्राहक
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महकूँ-झूमूँ मैं, गाऊँ मैं, मन अपना बहलाऊँ
प्रभु को पास समझकर, मन अपना हल्काऊँ।
मन में हो सब हेतु आदर, न कोई ऊँचाँ -नीचा
काम करे जो कोई अच्छा, वही सबसे सच्चा।
जिसके मन में हो सच्चाई, वह हो सबका मीत
ऐसे मनुज से सब करते हैं, मन में सच्ची प्रीत।
गुण-ग्राहक बन जाओ, फलों से झुक जाओगे
संगति जैसी तुम पालोगे, वैसे ही बन जाओगे।
आँखें कई उठी लिए तुम्हारे, तुम उनके बन जाओ
ले लो सबको बाहों में तुम, मन उनका महकाओ।
दो आशा सबको तुम, स्वयं भी आशावान बनो
समाधिपद में रहो हमेशा और चरित्रवान बनो।
गौतम बुद्ध - महावीर बनो और बनो बापू गांधी
भीम बनो तुम, बनो युधिष्ठिर और शिव के नांदी।
विश्व हमेशा वैसा ही दर्शित, जैसा तुम चाहते हो
होगा कोष विशाल तुम्हारा, अगर ऐसा चाहते हो।
सोचना अपना अच्छा-बुरा, धार अपनी पहचानना
स्वयं पर भरोसा करके तुम, राह अपनी संवारना।
पवन कुमार,
11 मार्च, 2014
(साभार डायरी से - दि० 23.03.1998 समय 1.10 बजे म० रा० )
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