निवाला
कल पढ़ी थी एक कविता नाम था उसका 'निवाला'
कवि है उसके सरदार अली जाफरी, सार उन्होनें बहुत है डाला।
एक नन्हें बच्चे की पीड़ा समझी है कवि ने
बहुत भावुक होकर उसके भविष्य पर दृष्टिपात करने की कोशिश की है।
माँ रेशम कारखाने में है और पिता सूती मिल में मुशर्रफ़ है
नया बच्चा जन्मा काली खोली में पड़ा है।
क्या होगा उस बच्चे का, कवि कहता है बच्चा बड़ा होगा
फैक्ट्री का वर्कर बनेगी, उसकी भूख सरमायेदारों की भूख बढ़ाएगी।
उसके हाथ सोना बनाऐंगे,
मालिक की बैंक की तिजौरी भारी होंगी, उसके घर में और रोशनी होगी।
कवि पूछता है कि कोई है जो बच्चे को निवाला बनाने से हटा कर देगा।
कवि के माध्यम से बच्चा पूछता है कि क्या कोई सहानुभूति वाला बच्चे को उसके पूर्ण मानव बनने के लिए अधिकार दिलवाने में मदद करेगा?
पर कितने हैं ऐसे-क्या तुम स्वयं हो?
पवन कुमार ,
15 मार्च, 2014 समय 8.05 सायं
(मेरी डायरी 19. 01. 2000 से )
No comments:
Post a Comment