नया सवेरा
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ऐ मेरे मन तू गा तो ले जरा
कि कभी ना हो कोई रुकने का माजरा।
चलते जाने में रहे तेरी इच्छा
न थमकर कभी बैठ जाने में।
हर एक से हो प्रेम का रिश्ता
सदा मिलूँ हँस -हँस कर सभी से।
लगन, मेहनत का दामन न छूटे कभी
कोई ख्वाब मन का अधूरा न रह जाए।
रात में ख्वाब जगे बहुत ही ज्यादा
और पूरा करने की हो भरपूर तमन्ना।
बहुत है आगे बढ़ना लोगों को लेकर संग
विवेक बहुत ही आए मन में।
कभी न भूलूँ अपने कर्त्तव्य
सदा सत्पथ पर बढ़ता चला जाऊँ।
माता सरस्वती की हो अनुपम कृपा
कि रहस्यों का रहस्य जान सकूँ।
अगर ज्ञान उनका हो गया
फिर नित्य नया सवेरा है।
भय सब ओर के मिटाऊँ
मानवता को मानव के समीप लाऊँ।
पवन कुमार,
20 मार्च, 2014 समय 10:44 प्रातः
( मेरी डायरी दि० 22.02.1999 से )
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