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Friday 28 March 2014

कुछ कामना


कुछ कामना 
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मध्य रात्रि का समय है, निस्तब्धता का आलम है। आँखें उनींदी हैं, कमरे में चल रहे गर्मी फैंकने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले ब्लोअर का शोर है। शायद और दिन होता तो सो जाता लेकिन मन ने कहा कि डायरी उठाओ और कुछ लिखो। लिखूँ  क्या, यह तो नहीं जानता लेकिन शायद मैं जो लिखता हूँ क्या वह पहले लिखे का दुहराना जैसा ही तो नहीं होता ? अगर होता भी तो क्या, दुहराने से स्मृति और परिपक्व हो जाती है।  अतः अपने दिमाग को लगाओ कुछ अच्छी बातें करने में। अगर नई हो तो सबसे अच्छी अन्यथा कुछ पुरानियों का स्मरण ही करों क्योंकि यह लिखना ही शायद तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने का साधन बन सकता है। 


मैं अपने में डूबा हुआ एक मानव हूँ 
अपनी राह ढूँढता हुआ थोड़ा सा विचलित हूँ। 

भ्रमित हूँ क्योंकि राह तो नहीं जानता 
दुःखित हूँ क्योंकि भ्रमित हूँ। 
फिर क्या उपाय है मन को विश्रांति देने का 
मनन करोगे तो किंचित कोई राह मिल जाए।  
  
नव वर्ष आया और तुम स्वयं से बतियाये नहीं हो 
और तो और बहुतों को कोई शुभकामनाएं भी नहीं दी है। 
दूसरों की खुशियों में सम्मिलित होना सचमुच आनंदमय है 
लेकिन समस्त जग की खुशियों की कामना और भी महानत्तर है। 

पर क्या केवल कामना करने से सब कुछ अच्छा हो जाता है 
निश्चय से कहो तो पूर्ण नहीं। 
परन्तु यह स्थिति निश्चित ही अच्छी है
 बस उसके साथ जग को थोडा और सुन्दर बनाने की कोशिश जरुरी है। 

आज मैं अपनी वर्तमान स्थिति में क्या कर रहा हूँ 
या यूँ ही बस सरकार से वेतन पा रहा हूँ। 
या फिर इस वातावरण का भोजन बन गया हूँ 
या इसको और भी दूषित कर रहा हूँ। 

स्वयं में प्रसन्न बहुत अच्छी स्थिति नहीं है 
कुछ दूसरों को भी प्रसन्न बनाने का यत्न किया करों। 
यदि मैं बस यूँ ही खुद में डूबा हूँ 
तो सार्थकता मेरी ज़माने में क्या है ?

प्रश्न विशाल है लेकिन उत्तर तो चाहिए 
करो विचार पर अब मुझे सोना चाहिए। 

पवन कुमार, 
28 मार्च, 2014 समय 10 :44 रात्रि 
(मेरी डायरी शिलौंग 8  जनवरी, 2000 समय 12 :45  मध्य रात्रि से)

1 comment:

  1. पुराना लिखा हुआ लेखन में, दुहराया गया हो सकता है मगर शब्द भिन्न होंगे और असर भी भिन्न ही होगा !
    मंगलकामनाएं आपको !

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